Sunday, October 17, 2021

बरेली के खिलाड़ी - अभय सिंह

बरेली के खिलाड़ी 

यह शायद 1984 - 85 का फोटो है एलबम से मिला तो लगा आज की पीढ़ी को पता चलना चाहिये कि बरेली के खिलाड़ी कैसे रहे है लिहाज़ा एक श्रृंखला शुरू कर रहा हूँ "बरेली के खिलाड़ी" मित्रों से गुज़ारिश है पुराने फ़ोटो हो तो साझा करें। 

इस श्रृंखला में सबसे पहले वैसे तो शुरुआत पंडित जी से होनी चाहिए थी आप सोच रहे होंगे पण्डित जी कौन ? 

यह क्रिकेट के पंडित है सब उन्हें प्यार से इसी नाम से बुलाते है नाम है अतुल मिश्रा 1980/1990 के दशकों में अतुल मिश्रा बहुत बड़ा नाम था लेकिन उन पर चर्चा फिर कभी अभी तो इस फोटो के पहले खिलाड़ी की बात करते है। बाकी दो लोग है राजेश शर्मा और मनोज दीक्षित इनकी चर्चा अगली दफा।

अभय सिंह


अभय जन्मजात खिलाड़ी था, था इसलिए कि वो आज हमारे बीच नही है एक दर्दनाक हादसे में हम सब को बेहद कम उम्र में ही अलविदा कह गये थे। कई दिनों से वो मेरे meditation में सपनों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर कुछ कहना चाह रहे है लेकिन समझ नही आया, तीन चार दिन पहले बेटी ने कुछ पुराने फ़ोटो दिखाए तो लगा social मीडिया के माध्यम से आप सबको बताना चाहिए। 

अभय से मेरी मुलाकात बरेली स्टेडियम में ही हुई थी उनका घर स्टेडियम की दीवार से लगा हुआ था उनकी छत से हम स्टेडियम की गतिविधियां देख सकते थे।1972/73 में मैंने स्टेडियम जाना शुरू किया था 8/9 साल की उम्र में यही उम्र अभय की रही होगी। हम दोनो उस उम्र में ही अच्छे दोस्त बन गये। हम दोनों में एक बात एक सी थी हम बोलते कम सुनते ज्यादा थे। हम दोनों ही एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे। वो बहुत सटीक सलाह देता था।

हमनें क्रिकेट ही क्यों चुना खेलना अभय का पता नही लेकिन मैंने तो पिताजी के कारण ही चुना हरेक टेस्ट मैच की कमेंट्री रेडियो में बजती थी वही से रुझान बढ़ा।

अभय ऑलराउंडर था सिर्फ क्रिकेट का ही नही हरेक खेल का। लेकिन मेहनत में उसका विश्वास नही था। यदि वो 50% भी मेहनत करता तो कम से कम रणजी की टीम में जरूर होता।

मुझे याद है वो फुटबाल के एक गोलपोस्ट से दूसरे गोलपोस्ट तक आराम से जेवलिन फेंक देता था और हाई जम्प भी किसी प्रोफेशनल खिलाड़ी की तरह करता था ।

अभी कुछ दिन पहले मेरी बात हमारे पहले क्रिकेट गुरु जी आर गोयल Sir से हुई थी करीब 45/46 साल बाद मुझे तो नही पहचान पाये लेकिन अभय का नाम लिया तो बोले अरे याद है मुझे वो लेगी न। लेगी यानि लेग स्पिनर। वो कमाल का लेग स्पिनर था लेकिन स्पोर्ट्स कॉलेज जाने के बाद वो पूर्णकालिक बल्लेबाज बन गया था । क्रिकेट गुरु भारद्वाज Sir का ब्लू आई बॉय था। 

अभय खेलता था कापी बुक स्टायल से। परफेक्ट डिफेन्स परफेक्ट कवर ड्राइव स्कवायर कट कोई भी शॉट और शानदार फील्डर, स्लीप में भी और दूर कहीं भी। स्पोर्ट्स कॉलेज की किसी भी टीम में वो होता ही था। 


लेकिन मुझे याद आता है वो 10वी क्लास तक ही स्पोर्ट्स कॉलेज में था परिवार में किसी हादसे के चलते शायद उसे कॉलेज छोड़ना पड़ा था। स्वभाव से अभय मस्त मौला था । 

मेरे स्पोर्ट्स कॉलेज से आने के बाद हम बरेली में साथ साथ खेलने लगे थे कुछ बड़े भी हो गए थे करीब 17/18 उम्र के । बहुत याद तो नही है लेकिन सुबह सत्य नारायण उर्फ दद्दा के नेट चलता था दद्दा के बिना बरेली की क्रिकेट का इतिहास अधूरा है लिखूँगा उन पर भी पण्डित जी के पास उनके फ़ोटो होंगे जरूर। 

दद्दा हम दोनों को टीम में रखते थे उन्हें धामपुर शुगर मिल में उनकी टीम से खेलने में मज़ा आता था हम दो महीने में एक दो बार तो जाते ही थे। 

सूद धर्म कांटे के पास एक मकान में हमारे विकेटकीपर मित्र संजू मुखर्जी रहते थे उनके बड़े भाई जिन्हें हम सब दादा कहते थे थम्सअप में बड़ी पोस्ट पर थे उनकी मदद से हमने टीम बनाई थम्सअप इलेविन कुछ महीने या सालभर चली वो थम्सअप टीम हमने कुछ बहुत ही शानदार मैच जीते थे करीब सब में ही अभय का योगदान बेहतरीन था। दो टूर्नामेंट मुझे याद आते है रबड़ फैक्ट्री और नैनीताल के, थम्सअप ने इन जगहों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। 

क्रिकेट का जुनून ऐसा था सुबह 5 बजे स्टेडियम पहुँच जाते सुबह भागादौड़ी करते नेट प्रेक्टिस करते सुबह का नाश्ता अभय के यहाँ या स्टेडियम में स्थित बरेली फुटबॉल होस्टल में करते लंच भी 3 बजे फिर मैदान में होते। अभय तो नेट के समय ही आता बैटिंग उसे मिलनी ही थी 3-4 नम्बर उसका ही होता था । उसे जरूरत ही नही होती थी मैच में फर्स्ट सेकेण्ड् डाउन जाता 40- 50 रन बनाता और वापस।

अभय अपने जीजा के बहुत करीब था रसूलपुर- अमरिया- मझोला के बड़े किसान है सर्वदत्त सिंह सब ठाकुर साहेब कहते हैं उन्हें, मैं तो कई बार उनके फार्म हाउस पर गया हूँ। लेकिन एक बार मझोला के एक क्रिकेट टूर्नामेंट में हम पूरी टीम वहाँ गए थे जिसमें बरेली के उस समय के करीब सभी तुर्रम खां गए थे खेलने और सभी जीजा के फार्म हाउस में ही करीब 10 दिन रुके थे ।

मझोला से शायद 6 किलोमीटर है फार्म हाउस हम सब टेक्टरों में बैठकर गए थे। उसी रात पहली बार हम लोग शिकार पर भी गए । लेकिन शुक्र है कोई निरीह जानवर मिला नही वरना मुझे अफसोस होता। उस समय तक हमें पता भी नही था शिकार करना अपराध की श्रेणी में आता है वो तो बाद में सलमान खान के हिरण कांड से पता चला यह अपराध है।

अभय ने मझोला वाले मैच में 50 रन बनाए थे उसे मैन ऑफ दी मैच मिला था। हमनें फाइनल जीता था और फार्म हाउस पर अच्छी दावत हुई थी उस दिन।


अभय को फ़िल्म देखना पसंद था हमने बहुत सी फिल्में साथ देखी। मिथुन चक्रवर्ती उनके पसंदीदा अभिनेता थे। माधुरी श्रीदेवी पसंद थी उसे और स्मिता पाटिल भी।

खाने पीने का कोई खास शौक नही था उसे जो मिल गया खा लिया । चाय पसंद थी उसे। मुझे याद नही कि मैंने उसे कभी भी गुस्सा करते हुए देखा हो । 

एक बार हमें कुछ काम करने का जुनून सवार हुआ हमने एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी खोली हम बरेली से माल लादते हल्द्वानी में उतारते पिताजी का सहयोग इस काम में मिला था अभय को पता था मेरी रुचि इस काम में नही है।

 सारा फील्ड का काम अभय ने संभाल लिया। ट्रक में माल लोड करवाना हल्द्वानी जाना माल उतारना वापस आकर फिर वही काम । मुझे कहता पण्डित हरीश शर्मा आप हिसाब किताब करे मेहनत मुझे करने दे। कम्पनी थोड़े दिन चली मैं पिथौरागढ़ चला गया और वही का होकर रह गया। 

एक बार बरेली आया तो अभय को मिलने गया । उसने मुझे खुश ख़बरी दी कि उसको टोपाज में नौकरी मिल गई है संघर्ष के दिन खत्म हुए । उसने मुझे बोला पहली सैलरी पर हम पार्टी करेंगे जब भी तुम पिथौरागढ़ से अगली बार वापस आओगे। मैं बहुत खुश था कि अभय खुश है । मैं वापस चला गया पिथौरागढ़। 


कुछ समय बाद एक दिन सुबह मेघना में पिथौरागढ़ की सबसे बेहतरीन मिठाई की दुकान और रेस्टोरेंट में मेरे घर से फोन आया । जब मैं वहाँ पहुँचा तो मेघना के मालिक मेरे दोस्त राजीव खत्री ने इतनी अजीब सी खबर दी कि बरेली से फोन आया था तेरा दोस्त अभय नही रहा एक दुर्घटना में। इससे आगे मैं कुछ सुन ही नही पाया मैं सदमें में था । मुझे अभी बरेली जाना है मैंने कहा, राजीव ने मेरी हालत देखकर कहा मैं चलता हूँ लेकिन मैंने खुद को संभाला। 

बरेली तक का वो सफर मेरी जिन्दगी का सबसे कठिन सफ़र था मैं सीधे अभय के घर पहुंचा अभय अब बॉडी हो गया था उसकी बॉडी जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रही थी । परिवार के कुछ अन्य लोग भी आने थे । जीजा ने बताया कि कैसे करंट लगने से उसने मेरी गोद मे ही दम तोड़ दिया मैं कुछ नही कर पाया। ठाकुर साहब जैसे मजबूत व्यक्ति को मैंने पहली बार इतना लाचार देखा था। 

उस रात मैं और हमारे विकेटकीपर मित्र संजू मुखर्जी अभय की बॉडी के पास बैठ कर सारी रात उसकी ही बात करते रहे। अभय के शान्त चेहरे को देखकर हमें कई बार लगा कि वो अभी उठकर कहेगा अबे तुम दोनो इतनी रात मेरे घर में क्या कर रहे हो लेकिन अफसोस वो नही उठा। 

अभय के घर से 5-7 मिनट की दूरी पर स्थित श्मशान घाट पर जहाँ हम दोनों अक्सर जाते थे  वहाँ जाकर हम खूब बातें करते थे उस शमशान घाट में जाना हम दोनों को अच्छा लगता था । उस दिन भी हम गये थे लेकिन वो मेरे कंधे पर था। जब वह पंचतत्व में लीन हो रहा था तब मैं और संजू पहली बार खूब रोये। 

अभय के चौथे पर बरेली के तमाम खिलाड़ी जुटे थे हम सबने निश्चित किया था कि अभय की याद में हम एक शानदार क्रिकेट टूर्नामेंट करायेंगे अफसोस हम नही करा पाये सभी अपने अपने जीवन संघर्ष में व्यस्त होते गये । मेरा बरेली हमेशा के लिए छूट गया मुझे पता है यदि मैं वहाँ रहता तो अभय सिंह क्रिकेट टूर्नामेंट हर साल होता। 

मुझे आज भी लगता है अभय किसी दिन किसी रूप में मुझे मिलेगा या मिल चुका होगा क्या मैं उसे पहचान पाया या पाऊँगा पता नही। लेकिन हम मिलेंगे जरूर।

हरीश शर्मा

भैया, एक वाकया आपसे बताने से छूट गया क्योंकि आप उसके साक्षी नहीं थे। कौन सा साल था ये तो मुझे याद नहीं है लेकिन इतना याद है कि वो 6 नवंबर के दिन था और उस दिन दीवाली के बाद का अन्नकूट का दिन था। 5 नवंबर को अभय भैया शाम को घर पर आए थे। बड़ी दीदी Kusum Pathak  के बड़े बेटे   Sunny Varun Pathak  का 6 नवंबर के बर्थडे था। तो अभय भैया ने 1 दिन पहले ही Sunny का गिफ़्ट लाकर दे दिया था कि हो सकता है मैं पार्टी में आने में late हो जाऊँ तो दीदी Sunny का ये गिफ़्ट तो आप अभी रख लो।  दीदी ने भी उस समय अभय भैया से कहा था, " अब तो जॉब भी अच्छा लग गया है अभय अब तो शादी कर ले।" 

"दीदी, हाँ अब तो कर ही लूँगा, अब तो वो समय भी निकल ही गया है जो ज्योतिषियों ने बताया था।" (अभय भैया को ज्योतिषियों ने अल्प आयु यानि 26-27 वर्ष की आयु में आकस्मिक मृत्यु का योग बताया हुआ था। वो वही बात की तरफ़ इशारा कर रहे थे।)

और अगले दिन, Suuny के बर्थडे यानि 6 नवंबर को अन्नकूट की वजह से में Dinesh Sharma  , Ramesh Sharma  वाले लगड़े बाबा के मंदिर में अन्नकूट की तैयारियों में सहयोग कर रहा था। तभी वहाँ Susheel Sharma बबलू भैया आये और अभय भैया की उस दर्दनाक हादसे में मृत्यु की बात बताई।  अभय भैया अपने घर में इतने अपने थे कि विश्वास ही नहीं हुआ, मैंने कहा मज़ाक कर रहे हो ना आप? उन्होंने कहा, "नहीं, करंट लगने की वजह से घर मे ही यह हादसा हुआ है। 

उसके बाद अन्नकूट के कार्यक्रम में कहाँ मन टिकता सो उसी समय मैं भी बबलू भैया के साथ अभय भैया के घर गए। 

ऐसा लग रहा था जैसे वो आराम से सुख से सो रहे हैं। मुझे आज भी याद है उस वक्त की फीलिंग्स। ऐसा लग रहा था मानो सब झूठ चल रहा है और अभय भैया अभी उठ कर खड़े हो जाएंगे और कहेंगें, "अरे आज इतने सारे लोग एकसाथ मेरे घर मे ?? क्या हुआ ?? सब ठीक तो है ना ?

मेरे भाई नवीन शर्मा का संस्मरण

Friday, March 22, 2019




                   

                         पुलवामा शहीद का बेटा बनेगा फुटबॉल खिलाड़ी 




14 फरवरी यानि पूरा विश्व इस दिन को प्यार के दिन के रूप में मनाता है लेकिन पाकिस्तान के मसूद अजहर गैंग ने कायरों की तरह पुलवामा में आतंकवादी हमला कर हमारे 40 जवानों की हत्या की उसे देश कभी भूल नही सकता।

40 जवानों के परिवारों पर जो विपदा आयी उसकी भरपाई करना तो असम्भव है लेकिन जिस तरह से देश एकजुट हुआ और अपने अपने तरीके से इन परिवारों की सहायता कर रहा है वो काबिले तारीफ है।

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गाँव विनायकपुरा इटावा के रहने वाले जवान शहीद राम वकील के परिवार को भी समझ ही नही आया कि 10 फरवरी को ही छुट्टी मनाकर गये तीन छोटे बच्चों के पिता के बिना उनके सपने कैसे पूरे होंगे।

राम वकील अपने बड़े बेटे अंकित को फुटबॉल खिलाड़ी और छोटे बेटे 10 वर्षीय अर्पित को सेना में भर्ती कराने का मंशा रखते थे।

ऐसे में स्पोर्ट्स कॉलेज सैफई के शिक्षा प्रभारी राजीव यादव को जब अंकित को फुटबॉल खिलाड़ी बनने की बात पता चली तो उन्होंने राम वकील के परिवार से मुलाकात कर शहीद राम वकील की आखिरी मुराद को पूरा करने का बीड़ा उठाया।

राजीव यादव ने अपने यहाँ करीब दो वर्षों तक फुटबॉल कोच रहे हेमचंद जोशी से सम्पर्क किया जो वर्तमान में स्पोर्ट्स कॉलेज लखनऊ के पूर्व छात्र वेलफेयर सोसायटी की फुटबॉल एकेडमी के मुख्य कोच है।

हेमचंद जोशी ने सोसायटी के वरिष्ठ लोगों से बात कर अंकित को अपने पास लखनऊ बुला लिया और घर में ही अपने बेटे की तरह रखकर फुटबॉल के बारीकी गुण सिखाये। सोसायटी के सचिव विनय सिंह ने अंकित का विशेष ख्याल रखा।

 खुशी के बात है कि हेम जोशी की मेहनत रंग लाई और हाल ही में अंकित का चयन स्पोर्ट्स कॉलेज लखनऊ में हो गया।

अब अंकित स्पोर्ट्स कॉलेज में रह कर कोच हरवीर सिंह की देखरेख में फुटबॉल का बेहतरीन खिलाड़ी बनेगा।

सोसायटी के मुख्य सचिव लवलेश माथुर ने बताया कि अंकित की सारी जिम्मेदारी सोसायटी की है जब तक वो फुटबॉल का खिलाड़ी बन अपने पैरों पर खड़ा नही हो जाता।

लवलेश माथुर का कहना है कि हमारी सोसायटी वैसे तो अपने ही पूर्व छात्रों और परिवार से सम्बंध रखती है। जरूरतमंद पूर्व खिलाड़ियों को यथासंभव सहयोग करती है। लेकिन यह हमारा सौभाग्य है कि हम पुलवामा शहीद के परिवार के किसी काम आ सके।

उनका कहना है सीमित साधनों के बावजूद हम यह जज्बा रखते है कि किसी भी अन्य शहीद का कोई बच्चा यदि खेलों में आना चाहे तो हम यथासंभव सहयोग करेंगे।

सोसायटी के अध्यक्ष पुष्पेंद्र वर्मा कॉलेज के पूर्व छात्र और कोच हेम जोशी का पूरी सोसायटी की तरफ से शुक्रिया करते है कि उन्होंने अंकित को करीब तीन सप्ताह अपने घर रखा और उसे इस काबिल बनाया कि उसका चयन स्पोर्ट्स कॉलेज में हो गया।

हेम जोशी का कहना है कि अंकित प्रतिभाशाली बच्चा है पिता के न होने के अहसास के बावजूद वो पिता के सपने को पूरा करने की जिद में है और यही जिद उसे अन्य खिलाड़ियों से जुदा खिलाड़ी बनायेगी ।

Wednesday, December 27, 2017

Book Review: I Am Not Guilty – Kasab by Harish Sharma

Book Review: I Am Not Guilty – Kasab by Harish Sharma: I wanted to be arrested, not killed by a bullet. We are thankful for all the Indian television channels' breaking news support during 26/11. No terrorist attack is possible in India without us or our support. Whether it's the burning of the Godhra ...

Friday, December 22, 2017

Friday, December 8, 2017

Check out @harishsharma1’s Tweet: https://twitter.com/harishsharma1/status/939153434816561152?s=09

Wednesday, December 6, 2017

My debut book released-

Dear friends
My debut book is available at #amazon and #notionpress pl grab your copy.
Book in Hindi releasing soon too.

I Am Not Guilty – Kasab https://www.amazon.in/dp/1948352737/ref=cm_sw_r_other_apa_i_wnakAbVCEWJ8S